उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की पूरे राज्य में अपनी अलग पहचान है। पिथौरागढ़ जिले के चौदांस घाटी में एक विशेष कंडाली फूल खिलता है। इस फूल के खिलने से घाटी में विशेष महक और हवा का अनुभव होता है। इसी कंडाली फूल के खिलने को एक महोत्सव की तरह मनाया जाता है। यह त्योहार अगस्त और अक्टूबर के महीने के बीच मनाया जाता है। इसी दौरान कंडाली के फूल के खिलने का समय होता है जो बारह साल में एक बार खिलता है। यह महोत्सव विशेष रूप से पिथौरागढ़ जिले के रूंग आदिवासी मनाते है।
पिथौरागढ़ जिले के रूंग आदिवासी कंडाली महोत्सव मनाते है। यह महोत्सव मनाने के पीछे बहुत सी वजह है। स्थानीय लोगों के अनुसार चौदांस घाटी में एक बार घुसपैठियों ने हमला कर दिया था। उस दौरान घाटी के सभी पुरुष व्यापार के सिलसिले में बाहर गए हुए थे। तब महिलाओं ने पूरे साहस के साथ घुसपैठियों का सामना किया था। हमले से पराजित होते हुए सभी घुसपैठिये कंडाली की झाड़ियों में छिप गए थे। लेकिन महिलाओं ने कंडाली की झाड़ियों को काटकर उन्हें वहां से भी भगा दिया। महिलाओं की वीरता को याद करने के लिए कंडाली महोत्सव मनाया जाता है।
कंडाली महोत्सव मनाने की दूसरी वजह भी है। ऐसा कहा जाता है कि पुराने समय में चौदांस घाटी की एक विधवा महिला का बारह साल का पुत्र कंडाली की झाड़ियों में उलझ कर मर गया था। इसलिए झाड़ियों से सावधानी बरतने के तौर पर जागरूकता के लिए यह महोत्सव मनाया जाता है। हालांकि कंडाली की झाड़ियां जहरीली नहीं होती है। बल्कि इनकी पत्तियों को भेड़-बकरियां चारे की तरह खाती है। वहीं इनकी लकड़ियां को जलाने के लिए उपयोग किया जाता है। लेकिन जिस वर्ष कंडाली का फूल खिलता है उस वर्ष इनका प्रयोग चारे या लकड़ियां जलाने के रूप में नहीं किया जाता है।
इस वर्ष भी कंडाली महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। दिन और रात में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम का उद्घाटन विधायक हरीश धामी ने किया। कंडाली महोत्सव कमेटी के पदाधिकारियों ने सभी अतिथियों को पगड़ी पहनाकर और बैज लगाकर सम्मानित किया। सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभारंभ गीता देवी, शर्मिला और सोनू देवी की टीम ने बंगबा संगसै इंगे पुदै रं वंदना गीत के साथ किया।