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एक समय ऐसा भी था, जब तहसील जाते ही लेखपाल मौके पर मिल जाते थे। लोगों की जो भी समस्या होती थी उसका तत्काल निस्तारण भी हो जाता था। लेकिन अब लेखपाल साहब मानो ईद का चांद हो गए हों। कभी कभार ही उनके दर्शन हो पाते हैं।
ऐसे में समस्या का निस्तारण समय पर नहीं होना, लेखपाल से मिलने के लिए बार-बार चक्कर कटवाना, कार्रवाई के नाम पर टालमटोल करना आम बात हो गई है। स्थिति यह है कि तहसील के चक्कर काटते-काटते लोग अब थक चुके हैं। लेखपाल अगले दिन आने को कहते हैं, लेकिन जब लोग यहां पहुंचते हैं तो पता चलता है कि साहब बाहर चले गए। ऐसे में आमजन का तहसील में होने वाले कार्यों से भी भरोसा कम होता जा रहा है।
तहसील सदर की बात करें तो 29 पदों के मुकाबले 16 लेखपाल काम कर रहे हैं। हर दिन लोग जमीन से जुड़े मामलों को लेकर यहां पहुंचते हैं, लेकिन अधिकांश लोग कभी लेखपाल न होने तो कई बार मामले लटकने से परेशान रहते हैं। हालांकि, इस मामले में लेखपालों का तर्क है कि एक लेखपाल के पास दो से अधिक सर्किल होने के अलावा विभिन्न कार्यों में व्यस्तता रहती है। इस कारण कई बार वह लोगों से नहीं मिल पाते।
राजस्व के अलावा अतिरिक्त कार्य से होती है लेटलतीफी
उत्तराखंड लेखपाल संघ के जिलाध्यक्ष संगत सिंह सैनी का कहना है कि आमजन की समस्या बिल्कुल सही है। वास्तव में आमजन इस अपेक्षा से आता है कि लेखपाल के पास आकर मेरा काम सुगम हो जाएगा व लेखपाल तहसील में अपनी सीट पर मिलेगा। लेकिन यह भी सत्य है कि लेखपाल के पास राजस्व के अतिरक्त कई कार्य आ जाते हैं।
इसके अलावा कई बार बड़े आयोजनों में भी तैनाती रहती है। इसके अलावा पटवारी सर्कल 1982 की जनसंख्या व क्षेत्रफल के आधार पर बने हुए हैं। जिससे वर्तमान परिस्थिति में काफी अंतर है। एक लेखपाल के पास दो-दो क्षेत्र हैं। अधिकतर फील्ड में रहते हैं।