स्थानीय लोगो के अनुसार अक्सर डीएफओ और अन्य वनकर्मी की बाहरी कंस्ट्रक्शन कंपनियों की मिली भगत के परिणामस्वरूप, पेड़ काटने की मामूली संख्या को मामलों को अपराध पुस्तिका में दर्ज करते हुए केस कंपाउंड कर नाम मात्र का जुर्माना डाल कर केस को बंद करते रहते है डीएफओ ने लोकल न्यूज़ 21 से बातचीत में कहा कि उत्तराखंड में 29 प्रजातियों के पेड़ों को काटना प्रतिबंधित है. वन संरक्षण अधिनियम 1976 के अंतर्गत कोई भी 29 प्रजातियों के किसी भी पेड़ को काटता है, तो उसको जेल जाना पड़ेगा प्रतिबंधित 29 वृक्ष बिना अनुमति नहीं कटेंगे आम (देशी, तुकमी, कलमी), नीम, साल, महुआ, बीजा साल, पीपल, बरगद, गूलर, पाकड़, अर्जुन, पलाश, बेल, चिरौंजी, खिरनी, कैथा, इमली, जामुन, असना, कुसुम, रीठा, भिलावा, तून, सलई, हल्दू, बाकली/करधई, धौ, खैर, शीशम और सागौन।
पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड के जंगलों में ब्रिज व सड़को के निर्माण विकास कार्यों की आड़ मे कुछ कंस्ट्रक्शन कंपनिया पेड़ो पर निरंतर आरी चला रही है। विभागीय आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो वर्ष 2008-09 से 2019-20 तक वनों में अवैध कटान के 13993 मामले आए।
इस हिसाब से देखें तो 12 साल की इस अवधि में प्रतिवर्ष औसतन 1166 मामले अवैध कटान के आ रहे हैं। परिदृश्य बताता है कि जंगलों पर वन तस्कर किस तरह निगाह गड़ाए बैठे हैं। अवैध कटान को रोकने के लिए वन विभाग को पूरी गंभीरता के साथ कदम उठाने होंगे।
वन विभाग के मुखिया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक के अनुसार सभी वन प्रभागों के प्रभागीय वनाधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे वन क्षेत्रों में अवैध कटान की रोकथाम के लिए प्रभावी कदम उठाना सुनिश्चित करें।