हरिद्वार सीट पर कदम तो बढ़े, लेकिन पूरे नहीं हुए घोषणापत्र के अधिकांश वादे

गंगा की अविरलता, निर्मलता और स्वच्छता का वादा और दावा पूरा नहीं हो सका। इसके लिए पिछले पांच वर्षों में काम तो कई हुए पर गंगा की अविरलता, निर्मलता और स्वच्छता के सवाल हल होने बाकी है।हरिद्वार में हाईवे के निर्माण का वादा भी अधूरा ही रहा। पुल का निर्माण नहीं होने से यात्रियों को नदी के रपटे में जान जोखिम में डालकर गुजरना पड़ता है। स्थानीय युवाओं को उद्योगों में 70 प्रतिशत रोजगार के वादे पर भी आधा-अधूरा ही काम हो पाया।

अभी गंगा में प्रदूषण को पूरी तरह समाप्त नहीं

हरिद्वार से सांसद डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने 2019 में गंगा की निर्मलता, हाई निर्माण, रोजगार, उप्र के साथ भूमि विवाद का हल, गन्ना मूल्य का भुगतान व खादर में बाढ़ नियंत्रण के काम आदि वादे अपने घोषणा पत्र में शामिल किए थे।

इन सभी क्षेत्रों में कुछ न कुछ काम तो हुआ है, लेकिन जिस तरह जनता को आस थी, उस तरह वादों को पूरा नहीं किया जा सका। हरकी पैड़ी के सुंदरीकरण समेत गंगा की निर्मलता व अविरलता के केंद्रीय योजनाओं के माध्यम से काम हुए, लेकिन अभी गंगा में प्रदूषण को पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सका है। शहर की गंदगी से गंगा लगातार प्रदूषित हो रही है।

इसी तरह हरिद्वार में हाइवे निर्माण का मामला भी अधर में है। हरिद्वार से हरिद्वार-दिल्ली और हरिद्वार-नैनीताल वाया बिजनौर-मुरादाबाद हाइवे होकर गुजरते हैं। हरिद्वार-नैनीताल हाइवे पर उत्तर प्रदेश की सीमा पर कोटावाली पुल को क्षतिग्रस्त हुए पांच वर्ष से अधिक का समय बीत चुका है पर नए पुल का निर्माण अब तक पूरा नहीं हो सका।

नतीजतन, यात्रियों को जान जोखिम में डाल नदी में रपटे पर से होकर गुजरना पड़ता है। यह हाइवे अब भी निर्माणाधीन है और इसे पूरा होने में अभी एक वर्ष से अधिक का समय लगने की संभावना है। हरिद्वार-दिल्ली हाइवे पर अधूरे पड़ेï फ्लाईओवर का निर्माण इस वर्ष फरवरी माह में पूरा हो सका।

रोजगार को लेकर भी घोषणा पत्र के मुताबिक न तो व्यवस्था बन सकी और न ही स्थानीय युवाओं को दावे के अनुसार रोजगार ही मिल सका। हरिद्वार औद्योगिक क्षेत्र में स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता के तौर पर 70 प्रतिशत रोजगार का वादा अब आधा-अधूरा ही रहा। हर बार यह वादा किया जाता है, लेकिन इस पर संकल्पबद्ध होकर कार्य नहीं हो पाता है। ईएसआइ अस्पताल के निर्माण का वादा भी अधूरा ही रहा।

उत्तर प्रदेश के साथ कृषि भूमि विवाद पर अभी विराम नहीं लग सका है। हाइकोर्ट के आदेश पर लक्सर क्षेत्र में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की सीमा से लगी कई बीघा सरकारी भूमि के स्वामित्व को लेकर दोनों प्रदेशों के किसानों में कई बार संघर्ष हो चुका है। इलाहाबाद हाइकोर्ट के आदेश पर विवादित भूमि की पैमाइश तो हुई पर समस्या का समाधान अब तक नहीं हुआ। गन्ना मूल्य भुगतान का भी कोई स्थाई समाधान अब तक नहीं निकला है। हालांकि सरकार की कड़ाई के बाद चीनी मिल मालिक भुगतान को लेकर पहले की अपेक्षा ज्यादा सजग हुए हैं पर बकाया भुगतान अब भी लंबित है।

हरिद्वार में हर 12 वर्ष में कुंभ, छह वर्ष में अर्द्धकुंभ के साथ-साथ हर वर्ष कांवड़ मेला व एक दर्जन से अधिक पर्व स्नान पर्व होते हैं। पर्व स्नान में ही लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। इसके सापेक्ष सुविधाओं की कमी बनी हुई है। यह स्थिति तब है जबकि हर बार कुंभ-अर्द्धकुंभ व कांवड़ यात्रा से पहले यात्री सुविधाओं के लिए बड़ा बजट खर्च किया जाता है। अधिकतर कार्य अस्थायी प्रकृति के होने के कारण यात्री सुविधाओं का विस्तार नहीं हो पाया है।

हरिद्वार का खादर क्षेत्र आजादी के पहले से बाढ़ की विभीषिका झेल रहा है। राज्य निर्माण के बाद से हर बार चुनाव के दौरान खादर क्षेत्र को बाढ़ से निजात दिलाने का वादा और दावा किया जाता है। बाढ़ नियंत्रण के कार्यों पर अच्छा-खासा बजट खर्च होता है, लेकिन इसके बावजूद बाढ़ की समस्या बनी हुई है।

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