लोकतंत्र के महोत्सव में एक-एक वोट महत्वपूर्ण होता है। एक वोट से किसी प्रत्याशी की किस्मत चमक जाती है तो किसी को मन मसोसकर रह जाना पड़ता है। इस सबको देखते हुए राजनीतिक दल भी चुनाव में सभी समीकरणों को ध्यान रखते आए हैं।
उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों ने छोटे-छोटे समूहों को भी केंद्र में रखा है। इसी क्रम में भाजपा ने राज्य में निवासरत जनजातियों तक पहुंच बनाने और उनका समर्थन हासिल करने पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है। जनसंख्या के हिसाब से देखें तो राज्य में जनजातियों की आबादी तीन लाख के लगभग है, लेकिन भाजपा का प्रयास है कि वह प्रत्येक जनजाति परिवार तक पहुंचे।
पार्टी कार्यकर्ताओं ने इसके लिए दस्तक देनी भी शुरू कर दी है। वे जनजाति बहुल गांवों व क्षेत्रों में जाकर उनके उत्थान को केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की जानकारी दे रहे हैं। इस दौरान अति पिछड़ी जनजातियों के उत्थान को केंद्र के प्रधानमंत्री जनजातीय एवं आदिवासी महाभियान (पीएम-जनमन) का विशेष तौर पर उल्लेख किया जा रहा है।
वर्ष 1967 में केंद्र सरकार ने उत्तराखंड में निवासरत बोक्सा, राजी, थारू, भोटिया व जौनसारी जातियों को अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया था। पांचों जनजातियों में बोक्सा व राजी अन्य की अपेक्षा अधिक पिछड़ी हैं। कुछ समय पहले केंद्र सरकार का ध्यान ऐसी जनजातियों की तरफ गया, जिनकी विशिष्ट पहचान है और उनकी जनसंख्या कम हो रही है।
इसके लिए लाए गए पीएम-जनमन अभियान में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों को विभिन्न योजनाओं से लाभान्वित करने पर जोर दिया गया। जनजातीय समूहों के गांवों में मूलभूत सुविधाओं के विकास, जनजातीय परिवारों की शिक्षा-दीक्षा, आजीविका विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया। पीएम-जनमन में प्रथम चरण में राज्य की अति पिछड़ी जनजातियों बोक्सा व राजी के 211 गांव शामिल किए गए हैं। इसके अलावा अन्य जनजाति बहुल क्षेत्रों के लिए राज्य सरकार ने विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं।
इस सबके मद्देनजर भाजपा ने जनजातीय समूहों के परिवारों तक पहुंच बनाने के लिए कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारियां सौंपी हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के अनुसार पार्टी राज्य के प्रत्येक वोटर तक पहुंच रही है। केंद्र एवं राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों से संवाद का क्रम तेज किया गया है। जनजाति बहुल क्षेत्र व गांवों में भी यह सिलसिला तेज किया गया है। उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में जनजाति समूहों के लोग भी विभिन्न योजनाओं से लाभान्वित हो रहे हैं। स्वाभाविक रूप से चुनाव में इसका लाभ पार्टी को मिलेगा।
समान नागरिक संहिता के दायरे से हैं बाहर
उत्तराखंड में रहने वाले जनजाति समूहों की अपनी विशिष्ट पहचान और परंपराएं है। वे अपनी समृद्ध सांस्कृतिक थाती के लिए जाने जाते हैं और उन्होंने ने इसे संजोकर भी रखा है। यही कारण भी है कि राज्य सरकार ने जब समान नागरिक संहिता का विधेयक पारित कराया तो इससे जनजातियों को बाहर रखने का निर्णय लिया। साथ ही सरकार ने इन जनजातियों के संरक्षण-संवर्द्धन के लिए प्रभावी कदम उठाने का भी इरादा जाहिर किया है।
उत्तराखंड में जनजातियों की जनसंख्या
- जिला, पुरुष, महिला
- ऊधम सिंह नगर, 61758, 61279
- देहरादून, 58265, 53399
- पिथौरागढ़, 9558, 9977
- चमोली, 6021, 6239
- नैनीताल, 3801, 3694
- हरिद्वार, 3385, 2398
- उत्तरकाशी, 1651, 1861
- पौड़ी, 1174, 1041
- बागेश्वर, 971, 1011
- चंपावत, 777, 562
- अल्मोड़ा, 633, 648
- टिहरी, 459, 416
- रुद्रप्रयाग, 217, 169
(नोट: ये आंकड़े जनजाति कल्याण विभाग द्वारा वर्ष 2016-17 में कराए गए बेस लाइन सर्वे के हैं। इसके बाद जनजातियों की संख्या में वृद्धि हुई है। वर्तमान में इनकी जनसंख्या तीन लाख पार करने का अनुमान है।)
किसी क्षेत्र में कौन सी जनजाति
- थारू :- ऊधम सिंह नगर के किच्छा, सितारगंज, खटीमा, नानकमत्ता समेत कुछ अन्य स्थानों पर थारू जनजाति के लोग रहते हैं। मान्यता है कि इन जनजातियों के लोग राजस्थान के थार मरुस्थल से यहां आकर बसे थे।
- जौनसारी :- देहरादून जिले के त्यूणी, कालसी, चकराता, लाखामंडल, टिहरी के जौनपुर और उत्तरकाशी के कुछ क्षेत्रों के अलावा भाबर क्षेत्र में जौनसारी जनजातियां हैं।
- भोटिया :- उत्तरकाशी, चमोली व पिथौरागढ़ जिलों के उच्च हिमालयी क्षेत्र में रहने वाली भोटिया जनजाति की कई उपजातियां हैं।
- बोक्सा :- ऊधम सिंह नगर जिले के काशीपुर, गदरपुर, बाजपुर, नैनीताल के रामनगर, देहरादून के विकासनगर, सहसपुर, डोईवाला, पौड़ी के कोटद्वार और चंपावत जिले के कुछ क्षेत्रों में बोक्सा जनजाति के गांव हैं।
- राजी :- पिथौरागढ़ जिले में राजी जनजाति के लोग हैं, जिनका प्रिय स्थल आज भी जंगल हैं।