चुनावी तपिश से बढ़ने लगा उत्‍तराखंड के गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र का राजनीतिक पारा, इनके बीच माना जा रहा मुख्य मुकाबला

भौगोलिक दृष्टि से प्रदेश की सबसे विषम और सबसे बड़ी समझी जाने वाली गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र में चुनावी युद्ध का जोश प्रत्याशियों से होकर अब राजनीतिक तापमान बढ़ाने लगा है।उच्च हिमालयी और सीमांत नीति-माणा से लेकर रामनगर के तराई और यमकेश्वर व नरेंद्रनगर में गंगा व सहायक नदियों के तटीय क्षेत्र तक पसरे इस भू-भाग में इन दिनों प्रत्याशी आरोप-प्रत्यारोपों, वार-पलटवार, वायदों को लेकर जनता की अदालत में जमकर पसीना बहा रहे हैं।

चुनावी दंगल में भाग्य आजमा रहे 13 प्रत्याशियों में भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, उत्तराखंड क्रांति दल, बहुजन समाज पार्टी, अखिल भारतीय परिवार पार्टी, बहुजन मुक्ति पार्टी, उत्तराखंड समानता पार्टी, सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर आफ इंडिया (कम्युनिस्ट), सैनिक समाज पार्टी के साथ ही चार निर्दलीय भी सम्मिलित हैं।

यद्यपि, मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के मध्य ही तय माना जा रहा है। भाजपा की ओर से राज्यसभा सदस्य और राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी और कांग्रेस की ओर से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल को आमने-सामने हैं। चुनावी शोर के बीच दलों की चिंता मतदाताओं की चुप्पी बढ़ाए हुए है। चर्चाओं को सुनने में रुचि ले रहा मतदाता प्रतिक्रिया देने से बचता दिख रहा है।

जटिल है सीट का भूगोल

राज्य की सबसे बड़े गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र का क्षेत्रफल 17820.90 वर्ग किलोमीटर है। यह क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से राज्य के पांच जिलों में फैला है। तीन पर्वतीय जिलों पौड़ी, चमोली और रुद्रप्रयाग के सभी 11 विधानसभा सीट इसमें सम्मिलित हैं। कुल 14 विधानसभा सीटों में से शेष तीन में टिहरी जिले की दो विधानसभा सीट देवप्रयाग व नरेंद्रनगर और नैनीताल जिले की रामनगर विधानसभा सीट इसके अंतर्गत हैं।

सीट की भौगोलिक परिस्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनावी दंगल में उतरे प्रत्याशियों के लिए चीन-तिब्बत के सीमांत इलाके नीति-माणा, केदारघाटी समेत उच्च हिमालयी क्षेत्रों की खड़ी चढ़ाई वाले इलाके जनसंपर्क की दृष्टि से अति दुर्गम हैं। वहीं तराई क्षेत्र में कोटद्वार के साथ ही रामनगर तक दौड़ भी वे लगा रहे हैं।

सियासी इतिहास

गढ़वाल संसदीय सीट के इतिहास पर नजर डालें तो 1951 के पहले लोकसभा चुनाव में इस सीट का नाम गढ़वाल डिस्ट्रिक्ट (ईस्ट) कम मुरादाबाद डिस्ट्रिक्ट (नार्थ ईस्ट) हुआ करता था। वर्ष 1977, 1980 व 1989 को छोड़ यह सीट भाजपा और कांग्रेस के ही पास रही। शुरूआती दौर में जहां कांग्रेस के टिकट पर भक्तदर्शन लगातार चार बार इस सीट से सांसद रहे, वहीं 11वीं, 12वीं, 13वीं व 14वीं लोकसभा के चुनाव में मे.जनरल बीसी खंडूड़ी ने इस सीट पर जीत हासिल की।

गढ़वाल सीट 37 वर्षों तक यह सीट कांग्रेस और 28 वर्ष तक भाजपा के पास रही। वर्ष 1977 में पहली बार यह सीट कांग्रेस के हाथ से निकली और जनता पार्टी के जगन्नाथ शर्मा जीते। वर्ष 1980 में जनता पार्टी-सेक्यूलर में आए हेमवती नंदन बहुगुणा ने जीत हासिल की और वर्ष 1989 में कांग्रेस छोड़ जनता दल में आए चंद्रमोहन सिंह नेगी ने जीत हासिल की।

सामाजिक समीकरण

गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र में 86 प्रतिशत हिंदू, आठ प्रतिशत मुस्लिम, चार प्रतिशत सिख व दो प्रतिशत ईसाई मतदाता हैं। संसदीय सीट के सामाजिक समीकरण पर नजर डालें तो 46 प्रतिशत ठाकुर, 26 प्रतिशत ब्राह्मण, आठ प्रतिशत एससी-एसटी व ओबीसी और छह प्रतिशत वैश्य व अन्य हैं।

इस क्षेत्र में में सैन्य परिवारों से जुड़ा बड़ा तबका है और सैन्य परिवारों से जुड़ा यह तबका चुनाव में निर्णायक भूमिका में होता है। सामाजिक समीकरण का प्रभाव अन्य चुनावों में दिखता है, लोकसभा चुनाव में इसका अपेक्षाकृत कम प्रभाव नजर आता है।

इनके बीच माना जा रहा मुख्य मुकाबला

अनिल बलूनी (भाजपा): केंद्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्तासीन होने के बाद भाजपा के भीतर अनिल बलूनी का कद काफी ऊंचा हुआ है। वह उत्तराखंड से राज्यसभा सदस्य तो हैं ही, साथ में पार्टी में राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी का महत्वपूर्ण पदभार भी संभाल रहे हैं।

उत्तराखंड में रिवर्स पलायन को प्रोत्साहित करते हुए उन्होंने मूल गांव से जुड़ने की पहल की। प्रधानमंत्री मोदी की छवि, भाजपा की सांगठनिक क्षमता के साथ राज्य की विभिन्न समस्याओं के समाधान को लेकर सक्रियता के बूते बलूनी चुनाव मैदान में हैं। वह गढ़वाल संसदीय क्षेत्र के विकास को अपनी शीर्ष प्राथमिकता गिनाते हुए मतदाताओं के बीच पहुंच रहे हैं।

कांग्रेस प्रत्याशी गणेश गोदियाल इस लोकसभा क्षेत्र में वर्ष 2019 से सक्रिय हैं। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए गोदियाल ने इस क्षेत्र में पार्टी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के साथ मधुर संबंध स्थापित किए हैं। कांग्रेस की सांगठनिक शक्ति के साथ क्षेत्र में सक्रियता गोदियाल की शक्ति है।

वह इस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत श्रीनगर विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं। कांग्रेस वनंतरा रिसार्ट प्रकरण को उछालकर महिला अपराधों को लेकर भाजपा की घेराबंदी में जुटी है। अग्निवीर के मुद्दे को सैनिक बहुल क्षेत्र में मुद्दा बनाया जा रहा है।

दलीय ताकत

  • भाजपाः गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र की कुल 14 विधानसभा सीटों में से सर्वाधिक 13 भाजपा के पास रही हैं। लोकसभा चुनाव के अवसर पर कांग्रेस के एकमात्र विधायक राजेंद्र भंडारी भी भाजपा का दामन थाम चुके हैं। भंडारी के आने के बाद भाजपा के विधायकों की संख्या फिलहाल जस की तस है, लेकिन कांग्रेस के पास रही एक विधानसभा सीट अब रिक्त हो चुकी है। नगर निकायों और पंचायतों में भी भाजपा मजबूत है। दो जिलों रुद्रप्रयाग व पौड़ी में जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर भाजपा का कब्जा है। चमोली समेत इन तीनों जिलों के 79 जिला पंचायत सदस्यों में से 41 जिला पंचायत सदस्य भाजपा के हैं। 27 ब्लाक प्रमुखों में से 19 भाजपा के हैं। नगर निकायों की बात करें तो इस संसदीय सीट में 12 नगर पालिका परिषदों में से नौ में भाजपा का कब्जा रहा। 11 नगर पंचायतों में से नौ पर भाजपा का कब्जा था। नगर निकाय अब भंग हैं।
  • कांग्रेसः गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र में नगर निकायों में कांग्रेस की स्थिति भी मजबूत रही है। इस क्षेत्र के अंतर्गत सर्वाधिक मतदाता वाले रामनगर, श्रीनगर व कोटद्वार विधानसभा क्षेत्रों में नगर निकायों पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। कोटद्वार नगर निगम में जहां कांग्रेस ने महापौर की सीट कब्जा किया था, वहीं रामनगर व श्रीनगर नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद कांग्रेस के पास रहे। नगर निकाय अब भंग हैं। इसके अलावा चमोली में जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर अभी कांग्रेस का कब्जा है। जिला पंचायत सदस्यों की बात करें तो 79 जिला पंचायत सदस्यों में से 38 सदस्य कांग्रेस के हैं। तीन जिलों में आठ ब्लाक प्रमुख, तीन नगर पालिका अध्यक्ष व दो नगर पंचायत अध्यक्ष कांग्रेस के पास हैं।

मतदाताओं की स्थिति

  • कुल-13,69,388
  • महिला-6,69,964
  • पुरुष-6,99,408

पिछले लोकसभा चुनाव में मत प्रतिशत

  • भाजपा, 68.25
  • कांग्रेस, 27.50
  • अन्य, 4.25

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