उत्तराखंड में स्थानीय बोली, भाषा को बढ़ावा देने के नाम पर 14 साल पहले बना भाषा संस्थान खुद का उत्थान नहीं कर पा रहा है। वर्षों बाद भी मुख्यालय का अता-पता नहीं है। संस्थान के एक्ट में इसका मुख्यालय देहरादून में बनाने का जिक्र है।वहीं, त्रिवेंद्र सरकार में इसको ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में बनाए जाने की घोषणा की गई, लेकिन अब तक न अस्थायी राजधानी देहरादून, न ही ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में इसका अपना मुख्यालय वजूद में आ पाया।
उस दौरान कहा गया कि गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया गया है। भाषा संस्थान के मुख्यालय के बाद वहां कई संस्थानों की स्थापना की प्रक्रिया शुरू होगी। गैरसैंण में उत्तराखंड भाषा संस्थान की स्थापना की घोषणा भी इसी दिशा में बढ़ाया गया कदम है। तत्कालीन सीएम की घोषणा के बाद बताया गया कि इसके लिए संस्थान के एक्ट में बदलाव के बाद गैरसैंण में भाषा संस्थान का मुख्यालय बनेगा, लेकिन संस्थान की स्थापना के 14 साल बाद इसके मुख्यालय के लिए दून में भूमि की तलाश की जा रही है।
संस्थान के अधिकारियों का कहना है कि संस्थान के एक्ट में संशोधन नहीं किया गया। एक्ट में मुख्यालय देहरादून में होने का जिक्र है। ऐसे में देहरादून के सहस्त्रधारा रोड में इसके लिए भूमि का चयन किया गया है। हालांकि, भूमि अभी भाषा संस्थान के नाम पर हस्तांतरित नहीं हुई।