जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से दोस्ती करते हैं, उस उम्र में स्नेह न क्रिकेट से दोस्ती कर ली थी। बचपन में गांव के लड़कों के साथ गली के क्रिकेट से शुरू हुआ यह सफर आज स्नेह की पहचान बन गया है। कोच नरेंद्र शाह और किरण शाह के कहने पर पिता भगवान सिंह राणा ने नौ साल की उम्र में देहरादून के लिटिल मास्टर क्रिकेट क्लब में स्नेह को प्रवेश दिलाया।
यहां से कोच नरेंद्र शाह के निर्देशन में स्नेह के प्रोफेशनल क्रिकेट खेलने की शुरुआत हुई। स्नेह टेस्ट क्रिकेट में दस विकेट लेने वाली भारत की पहली महिला स्पिनर है। दक्षिण अफ्रीका के साथ खेले गए एक टेस्ट मैच में उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की है।
स्नेह ने वर्ष 2014 में श्रीलंका के खिलाफ अपना पहला वनडे और 20-ट्वेंटी मैच खेला। वर्ष 2021 में उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ अपना पहला टेस्ट मैच खेला। वर्ष 2016 में घुटने की चोट के बाद स्नेह को भारतीय टीम से बाहर कर दिया गया था, लेकिन स्नेह का खेल के प्रति जुनून और समर्पण ही था कि पांच साल बाद वर्ष 2021 में उन्होंने भारतीय टीम में दमदार वापसी की।
बचपन से ही आलराउंडर की भूमिका में रहीं स्नेह
स्नेह के कोच नरेंद्र शाह कहते हैं कि “आलराउंडर की खूबी तो स्नेह में बचपन से ही थी। स्नेह पढ़ाई और खेल, दोनों में ही अव्वल रहीं। क्रिकेट, फुटबाल, बैडमिंटन या टेबल टेनिस हो अथवा पेंटिंग व ट्रेकिंग, हर क्षेत्र में वह आगे रहती थीं।” स्नेह जितना खेल में ध्यान लगाती थीं, उतना ही वह पढ़ाई में भी ध्यान देती थीं। स्नेह ने कभी मेहनत से जी नहीं चुराया।
स्पिन गेंदबाजी की दी सलाह
कोच नरेंद्र शाह बताते हैं कि लिटिल मास्टर क्लब में आने के बाद स्नेह तेज गेंदबाजी करने लगी थी। उसकी गेंद अंदर की तरफ आती थी, यह देखकर उन्होंने उसे स्पिन गेंदबाजी करने की सलाह दी। स्नेह ने भी सलाह मानी और इस क्षेत्र में मेहनत की। इसके बाद से वह आफ स्पिन गेंदबाजी करने लगीं।
जेब में रखकर लाती थीं रोटी
स्नेह के बचपन के कोच नरेंद्र शाह बताते हैं कि स्नेह का क्रिकेट का प्रति जुनून इस कदर था कि प्रेक्टिस के लिए एकेडमी आने में देर न हो, इसलिए वह जेब में रोटी रखकर लाती थीं। वह याद करते हुए कहते हैं, “एक बार मैं एकेडमी में बच्चों को अभ्यास करा रहा था, देखा कि स्नेह की जेब में कुछ रखा हुआ है। मैंने उसे अपने पास बुलाया और पूछा तो पता चला कि स्नेह की जेब में कागज से लिपटी रोटी और आलू की सब्जी थी।
मैंने स्नेह से इसका कारण पूछा तो वह बोलीं, “शाम को स्कूल से लौटने के बाद एकेडमी आने में देर न हो जाए, इसलिए मैं जेब में रोटी रखकर लाती हूं, ताकि जब भी समय मिले उसे खा लूं।” क्रिकेट के प्रति स्नेह का यही जुनून है, जो आज वह इस मुकाम पर पहुंची हैं।