गर्भावस्था में डटी रहीं दून की कैप्टन याशिका, रिटायरमेंट के बाद भी देश सेवा जारी

नारी को शक्ति का प्रतीक माना गया है। शक्ति, जिसका अर्थ सिर्फ शारीरिक बल नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक संतुलन भी है। यह कहानी भी ऐसी ही एक वीरांगना की है, जिन्हें न सिर्फ लेह के अत्याधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र में तैनात होने वाली पहली महिला लॉजिस्टिक्स अधिकारी बनने, बल्कि कारगिल युद्ध में लाजिस्टिक विंग के माध्यम से अटल सहयोगी की भूमिका निभाने का भी मौका मिला है।

बात हो रही है दून निवासी 52-वर्षीय कैप्टन याशिका हटवाल त्यागी (सेनि) की, जो वर्ष 1997 में लेह में लाजिस्टिक विंग में तैनात हुई थीं। दो साल बाद मई 1999 में जब उनकी पोस्टिंग पूरी होने वाली थी, तब उन्हें अच्छी और बुरी, दोनों खबर एक साथ मिलीं। उन्हें खुद के गर्भवती होने का पता चला, मगर तभी कारगिल युद्ध भी छिड़ गया।

लेह में रहकर भारतीय सैनिकों की मदद की

याशिका को अपनी भूमिका तय करने में जरा भी समय नहीं लगा। उन्होंने तय किया कि लेह में रहकर भारतीय सैनिकों की मदद करेंगी। आज जब कैप्‍टन याशिका रिटायर जीवन जी रही हैं तो देश प्रेम की उनकी भावना यहां भी अपने चरम पर है। वह अब एक प्रेरक वक्ता के रूप में लड़कियों को सशस्त्र बलों में शामिल होने के लिए प्रेरित करती हैं। महिला सशक्तीकरण के उनके प्रयासों के लिए हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें सम्मानित किया।

सैन्य अधिकारी थे पिता

कैप्टन याशिका ने बताया कि वह हमेशा वर्दी पहनना चाहती थीं। उनके पिता एक सैन्य अधिकारी थे, जिन्होंने 1962 का भारत-चीन और 1965 व 1971 का भारत-पाक युद्ध लड़ा था। वह बताती हैं, ‘जब मैं सात साल की थी, मेरे पिता का निधन हो गया। मुझे समझ नहीं आया कि यह क्या हो रहा है। फूल मालाओं में सजा उनका पार्थिव शरीर सेना के ट्रक में लाया गया था। लेकिन, जिस तरह से उनके साथी अधिकारियों और सहकर्मियों ने हमारे परिवार की मदद की, उसने मेरे दिल को छू लिया।

पिता के निधन के बाद मां ने परिवार को संभाला और बेटियों की परवरिश के लिए एक स्कूल में शिक्षक बन गईं। उन्होंने हमेशा ही शिक्षा का महत्व हमें समझाया और आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित किया।’ याशिका बताती हैं कि उन्होंने आइपीएस अधिकारी बनने का फैसला किया था, क्योंकि तब महिलाओं को सेना में शामिल होने की अनुमति नहीं थी।

सौभाग्य से, जिस वर्ष उन्होंने स्नातक की उपाधि पाई, सेना ने विशेष प्रवेश योजना के तहत गैर-लड़ाकू भूमिकाओं में महिलाओं के लिए अपने दरवाजे खोल दिए। उन्होंने 1994 में ओटीए चेन्नई में प्रशिक्षण प्राप्त किया। उनका बैच सेना में शामिल होने में से एक था। यह साबित करने के लिए कि वह पुरुषों से किसी भी तरह कमतर नहीं हैं, उन्होंने अपने लिए एक कठिन क्षेत्र चुना। वर्ष 1995 में उनकी पहली पोस्टिंग हुई। उसी वर्ष उन्होंने साथी अधिकारी से शादी की और 1996 में उनका पहला बेटा हुआ।

वर्ष 1997 में लाजिस्टिक विंग में उत्तर पूर्वी क्षेत्र में पहली पोस्टिंग पूरी करने के बाद उन्होंने एक और कठिन पोस्टिंग का विकल्प चुना। इस बार उन्हें लेह के अत्याधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र में भेजा गया, जहां तैनाती पाने वाली वह पहली महिला लाजिस्टिक्स अधिकारी थीं। वर्ष 1999 में जब उनकी पोस्टिंग खत्म होने वाली थी, तभी कारगिल युद्ध छिड़ गया। वह उस वक्त गर्भवती थीं।

‘हम युद्ध लड़ रहे हैं और हम जीतने जा रहे हैं’

बकौल याशिका, ‘मेरे लिए यह आसान नहीं था। कई बार आक्सीजन का स्तर कम होने के कारण ठीक से सांस लेना भी मुश्किल हो जाता था। गर्भस्थ शिशु के लिए भी में लगातार चिंतित रहती थी। पति तब प्रास में तैनात थे और युद्ध लड़ रहे थे। मेरा बड़ा बेटा इस विषय में सवाल पूछता तो मेरा जवाब सिर्फ इतना होता था कि हम युद्ध लड़ रहे हैं और हम जीतने जा रहे हैं।’

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