![](http://doonujala.com/wp-content/uploads/2024/01/001-poster-release-scaled.jpg)
अगले साल होने वाले आम चुनावों से पहले सोशल इंजीनियरिंग को लेकर खूब चर्चा होने वाली है। इसके लिए रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को प्रमुख वजह बताया जा रहा है। दरअसल अन्य पिछड़ा वर्ग की सब-कैटेगरी पर गौर करने के लिए बने आयोग ने सोमवार को भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब विपक्षी दलों की ओर से जाति जनगणना को लेकर लगातार मांग की जा रही है। विपक्ष भाजपा को मात देने के लिए पिछड़ी और अनुसूचित जाति के वोटरों को साधने का प्रयास कर रहा है।
क्या है रोहिणी आयोग?
ओबीसी के उप वर्गीकरण (सब-कैटेगरी) के परीक्षण के लिए अक्टूबर, 2017 की एक अधिसूचना के मार्फत अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए यह आयोग गठित किया गया था। दिल्ली उच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी इस आयोग की अध्यक्ष हैं। उनके नाम के चलते ही इसे रोहिणी आयोग कहा जाता है। अक्टूबर 2017 में गठित सेवानिवृत्त न्यायाधीश जी रोहिणी की अध्यक्षता वाले आयोग को अब तक 14 बार विस्तार मिल चुका है। शुरुआत में ओबीसी कैटेगरी के भीतर लगभग 3,000 जातियों को उप-वर्गीकृत करने के लिए 12 सप्ताह का समय दिया गया था। लेकिन फिर इसे और विस्तार दिया गया। रोहिणी आयोग से ओबीसी जातियों के बीच 27% ओबीसी कोटा को समान रूप से विभाजित करने की सिफारिश करने के लिए भी कहा गया था।
रोहिणी आयोग को क्या-क्या जिम्मा मिला था?
समाज कल्याण मंत्रालय ने एक बयान में बताया कि 13 बार कार्यकाल बढ़ाये जाने के बाद इस आयोग ने सोमवार को अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी। आयोग को ओबीसी की केंद्रीय सूची में विभिन्न प्रविष्टियों का अध्ययन करने का जिम्मा दिया गया था। उसे किसी भी पुनरावृति, अस्पष्टता, विसंगति, वर्तनी या प्रतिलेखन (ट्रांसक्रिप्शन) की त्रुटियों को सुधारने, ओबीसी के बीच आरक्षण के लाभों के असमान वितरण का पता लगाने, तथा इन विभिन्न खामियों को वैज्ञानिक ढंग से दूर करने के लिए प्रणाली, मापदंड आदि तैयार करने का भी जिम्मा दिया गया था।