उत्तराखंड में निर्दलियों नहीं, मतदाता को नोटा पर ज्यादा भरोसा, लोकसभा चुनावों में था ट्रेंड

2014 के चुनाव में पहली बार शुरू हुआ नोटा ( नन ऑफ द एबव) का रिकॉर्ड उत्तराखंड में बहुत ही दिलचस्प हैं। 2014 और 2019 के लोकसभा के चुनाव में प्रदेश के 98989 मतदाताओं ने निर्दलियों से ज्यादा नोटा पर भरोसा जताया। मतदाताओं ने भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी को छोड़ अन्य दलों से भी दूरी बनाकर रखी।

प्रदेश की पांच सीटों पर 2014 और 2019 में हुए बीते दो लोकसभा चुनावों में 126 उम्मीदवारों ने चुनावी दंगल में जोर आजमाइश की। इसमें से केवल 33 ही नोटा से अधिक वोट पा सके। गौर करने वाली यह है कि 2014 में हरिद्वार सीट ही ऐसी थी जहां पर दो निर्दलियों को नोटा से अधिक वोट मिले थे।

हरिद्वार रहा सबसे पीछे बेशक हरिद्वार में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की संख्या चारों लोकसभा चुनाव में प्रदेश की किसी भी सीट पर सबसे ज्यादा हो, पर नोटा को मिले मत प्रदेश में सबसे कम रहे। 3049 और 6281 मत क्रमश 2014 और 2019 में नोटा को मिले थे।

चुनाव आयोग के आंकड़ों पर गौर करें तो यह बात भी साफ होती है कि उम्मीदवार घटने के बाद भी नोटा मतदाताओं की पसंद रहा। 2014 में जहां 74 उम्मीदवार मैदान में थे, वहीं 2019 में यह संख्या 52 रह गई। इसके ठीक उलट 48043 मतदाताओं ने 2014 में नोटा का ऑप्शन चुना। जबकि 5 साल बाद यह संख्या 50946 पहुंच गई। सबसे ज्यादा अंतर हरिद्वार में आया। यहां नोटा की संख्या 3049 से 6281 पर पहुंच गई थी।

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