देश में एक ऐसा भी शहर है जिसे अयोध्या के नाम से जाना जाता है। इसी शहर में दो संगम के बाद से मां गंगा देशभर में प्रसिद्ध हो जाती है। देवप्रयाग तीर्थ को उत्तराखंड की अयोध्या माना जाता है। त्रेता युग से जुड़ी अनेक कथाएं और स्थान देवप्रयाग क्षेत्र में मौजूद हैं।
स्कन्दपुराण के अनुसार देवप्रयाग नाम स्वयं भगवान राम ने रखा है। लंका के राजा रावण वध से लगे ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिये भगवान राम देवप्रयाग में प्रायश्चित तप किया था। विश्वामित्र के शाप से मकरी बनी किन्नरी पुष्पमाला को मुक्ति दी थी।
भगवान शिव की प्रसन्नता हेतु राम ने आदिविश्वेश्वर शिवलिंग स्थापित किया था। स्कन्दपुराण के मुताबिक, भगवान राम द्वारा देवप्रयाग में किये गये पिंडदान को लेने स्वर्ग लोक से स्वयं राजा दशरथ यहां आये थे। राम के पूर्वज भगीरथ देवप्रयाग तक भागीरथी को लाये थे, जो अलकनंदा से संगम के बाद गंगा बन गंगासागर तक गई हैं।
देवप्रयाग में विशाल दशरथाचल पर्वत भी स्थित है, जिसकी चोटी पर राजा दशरथ का पत्थर का सिंहासन आज भी मौजूद है। यहीं पर श्रवणकुमार की तेजस्वी कावड़ रखे जाने के दो चिह्न आज भी बने हैं, राम के पूर्वज राजा पृथु के नाम से पृथुधार भी है।
मान्यता है कि दशरथ पुत्री शांता ने देवप्रयाग में तप कर ब्राह्राणत्व प्राप्त कर श्रृंगी ऋषि से विवाह किया था। शिव के वरदान से शांता यहां नदी रूप में बहती हैं, इसके सामने श्रृंगी ऋषि की गुफा भी है। देवप्रयाग जिस गृद्धाचल पर्वत पर बसा है, उसे जटायु की तपस्थली कहा गया है। वशिष्ठ की तप की गुफा और कुंड देवप्रयाग संगम स्थल पर स्थित हैं।