मातृभाषा से जुड़े रहने के लिए प्रेरित कर रही उत्तराखंड की बिटिया, इंटरनेट को बनाया हथियार; PM ने सराहा

वजह रोजगार हो या कुछ और…। जब कोई घर छोड़ता है तो सिर्फ अपने ही नहीं छूटते, बल्कि बोली-भाषा, संस्कृति और परंपरा भी पीछे छूट जाती है। यह दर्द उत्तराखंड से अच्छी तरह कौन समझ सकता है, जहां 1700 से अधिक गांव जनविहीन हो चुके हों।

पलायन की इस चुनौती से सबसे ज्यादा जूझ रहा है पौड़ी जिला। यहीं की रहने वाली कंचन जदली स्वरचित कार्टून चरित्र ‘लाटि’ के माध्यम से प्रवासियों को अपनी बोली-भाषा, संस्कृति व पर्वों से जुड़े रहने के लिए प्रेरित कर रही है। साथ ही उत्तराखंड की लोकभाषा गढ़वाली और कुमाऊंनी के संरक्षण व संवर्धन में भी जुटी हैं।

कंचन की लाटि और गुदगुदाती पंचलाइन दिल छू लेती है। सरकार भी उनके प्रयास को सराह रही है। इस कड़ी में गढ़वाल मंडल विकास निगम लाटि के सहयोग से देवभूमि आने वाले पर्यटकों को यहां की बोली-भाषा व संस्कृति से रूबरू करा रहा है तो समाज कल्याण और महिला एवं बाल विकास विभाग इसके जरिये युवाओं को नशामुक्ति के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

कंचन शिक्षा विभाग और उत्तराखंड राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (यूएसआरएलएम) के लिए भी कार्य कर रही हैं। जयहरीखाल विकासखंड में स्थित बिल्टिया गांव निवासी कंचन का परिवार वर्तमान में कोटद्वार में रहता है। उन्होंने लाटि आर्ट की शुरुआत नवंबर 2020 में की। उद्देश्य था कि उत्तराखंड के प्रवासी परिवार पहाड़ से दूर रहकर भी अपनी जड़ों से जुड़े रहें।

इसके लिए उन्होंने एक कार्टून चरित्र गढ़ा, जिसका नाम रखा लाटि, पहाड़ में इसका मतलब प्यारी, सीधी और नादान लड़की से है। इसी कार्टून के जरिये कंचन ने प्रवासी उत्तराखंडियों को पहाड़ से जोड़ने की पहल शुरू की, जिसमें सफलता भी मिल रही है। लोगों को उनके कार्टून इस कदर भाए कि अब वह लाटि पोस्टर, कैंलेंडर, कप, की-चेन, फ्रेम आदि भी बना रही हैं।

कंचन ने दैनिक जागरण को बताया कि उनका उद्देश्य हर एक पहाड़ी के मन में पहाड़ के लिए प्यार जगाना और उन्हें अपनी बोली-भाषा से जोड़े रखना है। ताकि, वह अपनी जड़ों की तरफ दोबारा लौटें। बकौल कंचन, उत्तराखंड के लोग बाहर गढ़वाली-कुमाऊंनी बोलने में शर्म महसूस करते हैं, जबकि इस पर गर्व होना चाहिए।

इस तरह कर रहीं प्रेरित

कंचन ने अपने एक चित्र में ‘होगा टाटा नामक देश का नमक, पहाड़ियों का नमक तो पिसयू लूण है’ पंचलाइन के साथ लाटि को नमक पीसते दिखाया है। इस संदेश को देखकर गर्व और प्रेम के मिश्रित भाव एक साथ हिलोरे मारते हैं। साथ ही अपनी संस्कृति के लिए मन में प्रेम उमड़ता है। यही कंचन का उद्देश्य भी है।

इंटरनेट मीडिया को बनाया हथियार

आजकल लोग इंटरनेट मीडिया पर काफी सक्रिय रहते हैं, ऐसे में कंचन ने भी जन-जन तक अपनी बात पहुंचाने के लिए इंटरनेट मीडिया को माध्यम बनाया। कंचन का लाटि आर्ट नाम से इंस्टाग्राम अकाउंट है, जिसके 26 हजार से अधिक फालोअर हैं। इसी पर वह लाटि के कार्टून पोस्ट करती हैं।

प्रधानमंत्री ने भी सराहा

अपने इंटरनेट मीडिया अकाउंट पर लाटि को सराह चुके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गत वर्ष दिसंबर में देहरादून में आयोजित वैश्विक निवेशक सम्मेलन में पहुंचे तो उनके सिर पर पहाड़ी टोपी थी, जिस पर ब्रह्मकमल का प्रतीक चिह्न कंचन ने ही डिजाइन किया था।

कैप्टन कूल को भेजी लाटि की प्रति

कंचन ने बताया कि नवंबर 2023 में उत्तराखंड आए भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धौनी ने उनसे वीडियो काल पर बात कर लाटि की प्रति भेजने का आग्रह किया था। इसके साथ कंचन ने ब्रह्मकमल और मोनाल के प्रतीक चिह्न भी धौनी को दिल्ली स्थित उनके आवास पर भेजे।

सराह रहे सरकारी विभाग

कंचन ने बताया कि पिछले दो वर्ष में उन्हें पांच विभागों के प्रोजेक्ट मिले हैं। इससे दर्जनों लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। फिलहाल वह शिक्षा विभाग के लिए लाटि के दो लाख कैलेंडर तैयार कर रही हैं। कृषि विभाग ने भी कैलेंडर बनाने का काम दिया है। यूएसआरएलएम से उनके उत्पादों की पैकिंग पर लाटि आर्ट बनाने की बात चल रही है।

कंचन राज्य पुष्प ब्रह्मकमल व राज्य पक्षी मोनाल की कलाकृति, पहाड़ी कला से सजे मग, लाटि की ड्रेस वाले बबल हेड भी बनाती हैं। ये उत्पाद वह अपनी वेबसाइट www.latiart.com के जरिये लोगों तक पहुंचा रही हैं। देश ही नहीं, श्रीलंका, जर्मनी, अमेरिका में रहने वाले उत्तराखंडी भी इन उत्पादों को पसंद कर रहे हैं।

कंचन के पिता सेना में थे। उनकी तैनाती विभिन्न जगहों पर होने के कारण कंचन की स्कूली पढ़ाई गांव, कोटद्वार व प्रयागराज में हुई। वह बचपन से ही कला के क्षेत्र में करियर बनना चाहती थीं। इसलिए इंटरमीडिएट की पढ़ाई कला वर्ग से की। स्नातक व परास्नातक चंडीगढ़ के गवर्नमेंट कालेज आफ आर्ट्स से किया।

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