यूपी से अलग होकर उत्‍तराखंड बनने के बाद देहरादून को हुआ नुकसान, ‘छिन गई’ संसदीय सीट

उत्तर प्रदेश से पृथक होकर उत्तराखंड बनने के बाद भले ही प्रदेश की राजधानी देहरादून के नाम से संसदीय सीट न हो, लेकिन एक जमाने में देहरादून के नाम से संसदीय सीट अस्तित्व में रही।अविभाजित उत्तर प्रदेश में 25 वर्ष यानी वर्ष 1952 से लेकर वर्ष 1977 में हरिद्वार संसदीय सीट के अस्तित्व पर आने के बाद यह सीट समाप्त हो गई। वर्तमान में देहरादून जिले का बड़ा हिस्सा टिहरी संसदीय सीट, जबकि शेष हरिद्वार सीट में है।

अलग संसदीय सीट हुआ करती थी देहरादून

स्वतंत्र भारत के वर्ष 1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में देहरादून एक अलग संसदीय सीट हुआ करती थी। इसका पूरा नाम देहरादून जिला-बिजनौर जिला (उत्तर-पश्चिम)-सहारनपुर जिला सीट था। इस चुनाव में कांग्रेस के महावीर त्यागी ने यहां से जीत दर्ज की। तब कुल 51.30 प्रतिशत मतदान इस सीट पर हुआ था।

महावीर त्यागी ने भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी जेआर गोयल को पराजित किया था। त्यागी को 63 प्रतिशत, जबकि गोयल को 13.81 प्रतिशत मत मिले थे। वर्ष 1957 के चुनाव में 60 प्रतिशत मतदान हुआ था। तब महावीर त्यागी ने दोबारा जीत दर्ज करते हुए प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नारायण दत्त डंगवाल को हराया था। त्यागी को 58.05 प्रतिशत और प्रतिद्वंद्वी रहे डंगवाल को 24 प्रतिशत मत मिले थे।

वर्ष 1962 के तीसरे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर महावीर त्यागी को मैदान में उतारा और उन्होंने हैट्रिक लगाई। इन चुनाव में 59.09 प्रतिशत मतदान हुआ और महावीर त्यागी ने भारतीय जनसंघ की प्रत्याशी सुशीला देवी को पराजित कर लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की। इस बार त्यागी को 50.89 प्रतिशत, जबकि दूसरे स्थान पर रहीं सुशीला देवी को 19.76 प्रतिशत मत मिले।

महावीर त्यागी की जीत का सिलसिला वर्ष 1967 के लोकसभा चुनाव में टूटा और वह निर्दल यशपाल सिंह से मात खा गए। हालांकि, इसका एक कारण कम मतदान प्रतिशत भी माना गया। उस दौरान देहरादून संसदीय सीट पर केवल 32.64 प्रतिशत मतदान हुआ। इसमें यशपाल सिंह को 49.83 और महावीर त्यागी को 36.64 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस ने वर्ष 1971 के चुनाव में यह सीट फिर हासिल की। इस चुनाव में कांग्रेस ने देहरादून सीट से मुल्की राज सैनी को प्रत्याशी बनाया।

तब पहली बार देहरादून संसदीय सीट पर सर्वाधिक 11 प्रत्याशी मैदान में थे और मतदान हुआ था 53 प्रतिशत। इसमें मुल्की राज को 68.48 प्रतिशत मत मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनसंघ के नित्यानंद स्वामी को 17.51 प्रतिशत पर संतोष करना पड़ा। यही चुनाव देहरादून संसदीय सीट के लिए अंतिम चुनाव रहा। वर्ष 1977 में नए परिसीमन के बाद देहरादून संसदीय सीट का अस्तित्व समाप्त हो गया और हरिद्वार संसदीय सीट अस्तित्व में आ गई।

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