पहाड़ में नहीं मिला ठिकाना तो नेताओं ने किया पलायन, इनमें से सात सात रह चुके मुख्यमंत्री

पलायन को पहाड़ की विडंबना कहें या इसे हकीकत मान लिया जाए। लोगों के साथ नेताओं को भी जब मौका मिला, उन्होंने पहाड़ छोड़ दिया। लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव। पहाड़ के नेताओं को जब पहाड़ में ठिकाना नहीं मिला तो उन्होंने मैदानी क्षेत्रों में अपनी राजनीतिक कर्मभूमि तलाश की।

भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी ने सबसे पहले इसकी शुरुआत की। भाजपा के दिग्गज मुरली मनोहर जोशी, हरीश रावत, बची सिंह रावत, भगत सिंह कोश्यारी, रमेश पोखरियाल निशंक, त्रिवेंद्र सिंह रावत, अजय भट्ट का नाम भी पलायन की सूची में दर्ज है।

तराई-मैदानी क्षेत्रों में इनका राजनीतिक प्रयोग सफल भी रहा। सात नेता उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। फिर इन्होंने मुड़कर राजनीतिक तौर पर पहाड़ की ओर नहीं देखा। वर्ष 2009 में अल्मोड़ा संसदीय सीट आरक्षित होने व हरिद्वार सीट सामान्य होने के बाद अल्मोड़ा सीट और गढ़वाल क्षेत्र के दिग्गज नेताओं ने हरिद्वार की ओर रुख किया था।

पंत परिवार ने पहाड़ को नहीं बनाया राजीनितिक कर्मभूमि

पहाड़ के सबसे बड़े नेताओं में शामिल भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत मूल रूप से खूंट (अल्मोड़ा जिला) के रहने वाले थे। उन्होंने रानीखेत में वकालत की प्रैक्टिस की। आजादी के बाद जब 1951 में उत्तर प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव हुए तो उन्होंने पहला चुनाव बरेली से लड़ा।

वह चाहते तो अल्मोड़ा, रानीखेत कहीं से भी चुनाव लड़ सकते थे। उप्र के वह पहले मुख्यमंत्री बने। चार साल बाद उन्हें 1955 में गृहमंत्री बना दिया गया। उनके निधन के बाद उनके पुत्र कृष्ण चंद्र पंत सक्रिय राजनीति में आए। वर्ष 1962 में उन्होंने लोकसभा चुनाव नैनीताल संसदीय सीट से लड़ा। कांग्रेस के टिकट पर वह लगातार तीन बार 1962, 67 व 71 में चुनाव जीते। उनकी पुत्रवधू और दामाद भी इसी सीट पर चुनाव लड़े और सफल रहे।

एनडी तिवारी को पसंद रहा तराई

आजादी के बाद वर्ष 1951 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा के पहले चुनाव में नारायण दत्त तिवारी ने प्रज्ञा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर नैनीताल उत्तर से चुनाव लड़ा और जीतने में सफल रहे। वर्ष 1957 में भी उन्होंने यहां से चुनाव जीता। 1962 में नैनीताल में वह कांग्रेस प्रत्याशी देवेंद्र सिंह से चुनाव हार गए।

इसके बाद उन्होंने पहाड़ से विदाई ले ली। उन्होंने कांग्रेस ज्वाइेन कर काशीपुर को अपनी कर्मभूमि बनाया और वर्ष 1976-77, 84-85, 88-89 में तीन बार मुख्यमंत्री बने। 1967 में काशीपुर से चुनाव हारने के बाद उन्होंने मुड़कर नहीं देखा। वर्ष 1969, 74, 77, 85 में लगातार चुनाव जीतने में सफल रहे।

1987 में उन्होंने हल्द्वानी से विधानसभा चुनाव जीता और उत्तराखंड बनने के बाद वह प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। वर्ष 2002 में रामनगर से उपचुनाव में जीत दर्ज की। लोकसभा के चुनाव भी उन्होंने नैनीताल-उधमसिंह नगर से ही लड़ा और जीता। सबसे पहला चुनाव 1980 में लड़ा और तब विजयी रहे। उसके बाद 1991, 96, 98, 99 में भी यही से चुनाव मैदान में उतरे।

बहुगुणा प्रवासी बनकर लौटे और पौड़ी से लड़ा चुनाव

पौड़ी के रहने वाले हिमालय पुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपना पहला लोकसभा चुनाव इलाहबाद से 1971 में कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और जीतने में सफल रहे। इंदिरा गांधी से अदावत के बाद उन्होंने 1977 में लखनऊ संसदीय सीट से भारतीय लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ा। जीत भी दर्ज की। 1980 में वह पौड़ी गढ़वाल संसदीय सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे और जीते। 1984 में फिर इलाहाबाद गए, लेकिन वह सुपर स्टर अमिताभ बच्चन से चुनाव हार गए। उन्होंने पहला विधानसभा चुनाव भी मैदानी क्षेत्र मनजहांपुर से लड़ा। वह वर्ष 1973 में उप्र के मुख्यमंत्री बने।

भाजपा के दिग्गज डा. जोशी भी पहाड़ से दूर हुए

भाजपा के मुरली मनोहर जोशी ने आपातकाल के बाद 1977 में पहला लोकसभा चुनाव भारतीय लोक दल के टिकट पर अल्मोड़ा संसदीय सीट से लड़ा और जीतने में सफल रहे। भाजपा के टिकट पर 1980 और 84 में लगातार हार के बाद उन्होंने अल्मोड़ा छोड़ दिया।

उन्होंने इलाहबाद को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाया। वह यहां से 1996, 98, 99 में जीत की हैट्रिक बनाने में कामयाब रहे। 2004 में वह इलाहबाद से चुनाव हार गए। इसके बाद वर्ष 2009 का चुनाव बनारस और वर्ष 2014 का चुनाव भाजपा के टिकट पर कानपुर से जीता।

चार बार लगातार हारने के बाद हरिद्वार पहुंचे हरदा

पूर्व सीएम हरीश रावत वर्ष 1980 में अल्मोड़ा संसदीय सीट से चुनाव जीते। वर्ष 1984, 89 का चुनाव भी जीत उन्होंने हैट्रिक लगाई। 1991, 96, 98, 99 में वह चुनाव हार गए। 2009 में अल्मोड़ा संसदीय सीट आरक्षित हो गई। इस आरक्षण के बाद उन्होंने हरिद्वार को अपनी कर्मभूमि बनाया।

वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव वह हरिद्वार से जीतने में सफल रहे। इसके बाद उन्होंने वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव नैनीताल-उधम सिंह नगर से लड़ा, लेकिन हार गए। हरीश रावत ने अभी भी अपनी राजनीतिक कर्मभूमि नहीं छोड़ी। हरिद्वार से उनके पुत्र वीरेंद्र रावत वर्तमान में लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी बेटी अनुपमा हरिद्वार ग्रामीण से विधायक भी हैं।

रेणुका ने मैदान से आजमाया भाग्य

कांग्रेस नेता हरीश रावत की पत्नी रेणुका रावत ने वर्ष 2004 में अल्मोड़ा संसदीय सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन वह हार गईं। हरीश रावत ने सीएम उत्तराखंड बनने के बाद वर्ष 2014 में हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र से रेणुका को चुनाव लड़वाया लेकिन वह हार गईं।

आरक्षण के बाद बचदा तराई-भाबर रवाना

अल्मोड़ा संसदीय सीट 2009 में आरक्षित हुई। इससे भाजपा-कांग्रेस के दिग्गजों ने भी यहां से पलायन किया। इनमें एक नाम भाजपा के दिग्गज बची सिंह रावत का भी है। वह अल्मोड़ा संसदीय सीट से वर्ष 1996, 98, 99, 2004 में सांसद बने। आरक्षित होते ही उन्होंने नैनीताल का रुख कर लिया। नैनीताल संसदीय सीट से उन्होंने 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ा और केसी सिंह बाबा से हार गए।

पहाड़ में नहीं तराई में टूटा 25 वर्ष का राजनीतिक वनवास

भाजपा के दिग्गज भगत सिंह कोश्यारी ने भी ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत अल्मोड़ा संसदीय सीट से वर्ष 1989 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़की की। तब वह हार गए और राजनीतिक करियर शुरू नहीं हो पाया। हार के 25 वर्ष बाद वर्ष 2014 में उन्होंने नैनीताल-उधमसिंह नगर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीतने में सफल रहे।

निशंक कर्णप्रयाग से डोईवाला और फिर पहुंचे हरिद्वार

पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने 1991 में कर्णप्रयाग से विधानसभा चुनाव लड़कर राजनीति की शुरुआत की थी। वह वर्ष 2009 से 11 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रहे। वर्ष 2012 में वह डोईवाला से मैदान में उतरे और विधायक चुने गए। दिल्ली में राजनीतिक संभावना तलाशने के लिए लोकसभा चुनाव लड़ने वह हरिद्वार चले गए। उन्होंने वर्ष 2014, 2019 का चुनाव हरिद्वार संसदीय सीट से जीता।

त्रिवेंद्र ने पौड़ी के बजाय हरिद्वार को बनाया कर्मभूमि

संघ के प्रचारक के रूप में करियर शुरू करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का विधानसभा क्षेत्र भी डोईवाला रहा। 2017 में वह मुख्यमंत्री बने। वर्ष 2022 में उन्होंने विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा। अपनी पैतृक जगह पौड़ी को न चुन उन्होंने हरिद्वार को अपनी नई राजनीतिक कर्मभूमि बनाया। वर्ष 2024 में निशंक का टिकट कटा तो त्रिवेंद्र सिंह रावत को हरिद्वार संसदीय क्षेत्र से टिकट मिल गया।

भट्ट रानीखेत से चुनाव हारे और नैनीताल से मिला टिकट

भाजपा के दिग्गज अजय भट्ट 2017 में रानीखेत से विधानसभा चुनाव हार गए थे। वह वर्ष 2002 से लगातार इस सीट से चुनाव लड़ रहे थे। 2007 व 2012 में वह विधानसभा चुनाव जीते। हारने के बाद 2019 में उन्होंने पहाड़ से पलायन कर लिया। फिर लोकसभा पहुंचने के लिए नैनीताल संसदीय सीट को अपनी कर्मभूमि बनाया। वह अभी तक इसी सीट पर डटे हैं।

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