अस्थमा-फेफड़ों के मरीज के लिए खराब होती जा रही देवभूमि के इस शहर की हवा, घुट रहा दम

वायु प्रदूषण को लेकर भले हल्द्वानी में अभी दिल्ली या अन्य बड़े शहरों की तरह स्थिति नाजुक नहीं है लेकिन हर माह यहां 110 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक प्रदूषण दर्ज हो रहा है। यह हवा में जहरीले कण यानी पीएम-10 (पार्टिकुलेट मैटर) की मात्रा है।प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वेबसाइट के अनुसार प्रदूषण की मात्रा 101 से 200 की तरफ बढ़ने पर अस्थमा, फेफड़े संबंधी रोग, हृदय से जुड़े रोगियों संग बुजुर्गों को दिक्कत आ सकती है। इसलिए लगातार प्रदूषण के स्तर की निगरानी की जाती है।

लगातार बढ़ रही हल्द्वानी की आबादी

कुमाऊं के प्रवेशद्वार हल्द्वानी की आबादी लगातार बढ़ रही है। सिर्फ नगर निगम क्षेत्र की आबादी साढ़े चार लाख पहुंच चुकी है। इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्र के लोगों के नौकरी व बेहतर मूलभूत सुविधाओं की वजह से यहां शिफ्ट होने का सिलसिला भी थम नहीं रहा। जिस वजह से प्रदूषण की मात्रा भी बढ़ रही है।हल्द्वानी में कोई इंडस्ट्री जोन तो है नहीं। लेकिन वाहनों की बढ़ती संख्या और रोज नए निर्माण होने से प्रदूषण बढ़ रहा है। चौंकाने वाला आंकड़ा ये है कि पर्यटन सीजन में हर दिन मंगलपड़ाव से तिकोनिया के बीच ही रोजाना 50 हजार वाहनों का आवागमन होता है। यह बात लोनिवि की सड़क दबाब से जुड़ी रिपोर्ट में सामने आई थी।

वायु प्रदूषण माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर में

  • माह – प्रदूषण मात्रा
  • जनवरी -119.85
  • फरवरी-     122.79
  • मार्च -120.84
  • अप्रैल -126.41
  • मई-         122.03
  • जून -121.03
  • जुलाई-      110.29
  • अगस्त -111

सितंबर –114.75

  • हल्द्वानी में वायु प्रदूषण की मुख्य वजह
  • निर्माण कार्यों में बढ़ोतरी के साथ ही वहां पीसीबी से जुड़े मानकों का पूर्ण पालन न होना।
  • जगह-जगह सड़कों की खुदाई के कारण भी प्रदूषण की मात्रा में वृद्धि देखने को मिलती है।
  • वाहनों की बढ़ती संख्या और पीक सीजन कई गुना वृद्धि होने से भी स्तर बढ़ने लगता है।
  • फायर सीजन के दौरान आसपास के पर्वतीय क्षेत्रों में लगने वाली आग भी एक वजह है।

इंटरसिटी को अनुमति मिलने पर कम होगा वाहनों का भार

19 अक्टूबर को परिवहन प्राधिकरण की बैठक है। जिसमें इंटरसिटी बसों के संचालन का प्रस्ताव भी आएगा। ये बसें रानीबाग से लेकर बेलबाबा, गौलापार और लामाचौड़ क्षेत्र तक को कवर करेंगी। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के मजबूत होने पर सड़कों पर निजी वाहनों की संख्या कम हो सकती है।

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