बद्रीनाथ धाम के मुख्य प्रवेश सिंह द्वार पर कुछ हफ्ते पहले दरारें दिखाई दीं। इससे प्रशासन चिंतित हो गया। हालांकि इसकी जानकारी लोगों को नहीं दी गई। शुरुआत में ऐसी संभावना थी कि दरारें भूधंसाव के कारण हो सकती हैं। बद्रीनाथ जोशीमठ से सिर्फ 40 किमी दूर है, जहां इस साल की शुरुआत में बड़े पैमाने पर धंसाव हुआ था। अब एएसआई अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने एक टीम भेजी, जिसने जमीनी सर्वेक्षण किया और पाया कि दरारें ‘बारिश और अन्य पर्यावरणीय कारकों’ के कारण आई थीं।
अधीक्षण पुरातत्वविद् (देहरादून सर्कल) मनोज सक्सेना ने टीओआई को बताया, ‘सिंह द्वार की भीतरी दीवार में छोटी दरारें और उभार आए हैं। हमारी टीम ने दीवार पर पत्थरों को जोड़ने वाले लोहे के क्लैंप को तांबे के क्लैंप से बदलकर मरम्मत शुरू कर दी है।’ पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा, ‘ये धरती के खिसकने से आई छोटी-मोटी दरारें हैं… हम प्रगति पर नजर रख रहे हैं।’ ‘सिंह द्वार’ का निर्माण 17वीं शताब्दी के आसपास मंदिर की वर्तमान संरचना के बाकी हिस्सों के साथ किया गया था और यह मुख्य मंदिर परिसर का हिस्सा है। इसके दोनों ओर कई देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं।
द्वार से प्रवेश करने वाले तीर्थयात्री आमतौर पर गर्भगृह तक पहुंचने से पहले देवताओं की पूजा करने के लिए यहां रुकते हैं। श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल) में एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय में भूविज्ञान विभाग के प्रमुख एमपीएस बिष्ट ने कहा, ‘जोशीमठ और बद्रीनाथ विभिन्न भूवैज्ञानिक संरचनाओं पर स्थित हैं। मुझे नहीं लगता कि बद्रीनाथ की स्थिति का जोशीमठ से कोई संबंध है। मंदिर में दरारों के लिए निश्चित ही कोई स्थानीय घटना जिम्मेदार होगी।’