बाहरी कंस्ट्रक्शन कपनियों द्वारा बिना अनुमति के चमोली उत्तराखंड मे पेड़ो का अवैध रूप से कटान करके बर्बादी की दास्तान जारी

उत्तराखंड की वादियों मे विकास कार्यों के नाम पर कुछ बाहरी कंस्ट्रक्शन कम्पनिया द्वारा अवैध तरीको से हरे भरे पेड़ो को काट कर उत्तराखंड की भूमि व जंगलो को बर्बाद किया जा रहा है,अगर बाहरी कंस्ट्रक्शन कम्पनिया की नाक पर नकेल ना कसी गई तो आने वाला भविष्य उत्तराखंड के लिए विनाशकारी सिद्ध होना तय है l

स्थानियों लोगो के द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार वन विभाग के कर्मियों और कंस्ट्रक्शन कंपनीयों की सांठ गांठ का पूरा खेल उत्तराखंड के वनो मे खेला जा रहा है,पहाड़ की भोली भाली जनता को धोखा देकर बर्बाद किया जा रहा है.

चमोली मे तो कुछ कंस्ट्रक्शन कम्पनिया वन अधिनियमों को ताक पर रखकर ब्रिजो का निर्माण बेफिक्री से कर रही है व अनुमति लिए बिना बड़ी आसानी से पहले पेड़ काट कर बाद मे अपराध पकडे जाने पर,उसका जुर्माना भरकर निरंतर गलत कार्य मे लिप्त है,

वन कर्मियों व वन अधिकारियो को चाहिए की अगर कोई पेड़ अवैध रूप से काटा गया है और उसका अपराध पकड़ा गया है तो इस अपराध पर वन अधिनियम के तहत सख्त से सख्त कार्यवाही करें व जेल के दर्शन जरूर कराये परिणामस्वरूप पहाड़ को बचाया जा सके व जंगली जानवरो के साथ इंसाफ हो सके

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने वनों की बड़े पैमाने पर कटाई को रोकने के लिए वन विभाग के द्वारा कोई कार्रवाई नहीं करने पर विभाग के अधिकारियों को फटकार लगाई है. कोर्ट ने सरकार से दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा है. हाईकोर्ट की डबल बेंच ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका स्वीकार की थी. याचिका पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने वन विभाग की कार्यप्रणाली पर कड़े शब्दों में कई सवाल उठाए.

हाईकोर्ट ने अधिकारियों को फटकार लगाईपेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर हाईकोर्ट ने अधिकारियों को फटकार लगाई है. न्यायमूर्ति शरद शर्मा और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कानून को समय की आवश्यकता और सामाजिक पारिस्थितिक परिवर्तनों को पूरा करना होगा, और जो अनुभव किया गया है वह यह है कि धीरे-धीरे, राज्य के वन क्षेत्र सिकुड़ रहे हैं, और इसके विपरीत, किसी भी विश्वसनीय आधार पर बिना किसी तार्किक आधार के इसकी वकालत की गई है.

कोर्ट ने कहा कि राज्य के विकास के उद्देश्यों के लिए एक समान आर्थिक विकास भी होना चाहिए. हाई कोर्ट ने कहा कि वन की सुरक्षा के अधिकारों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए. अदालत ने यह भी कहा कि ऐसी प्रथाएं सिर्फ एक जगह तक सीमित नहीं हैं,बल्कि पूरे राज्य में हो रही हैं, और विभाग कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है.

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