अधिकारियों की नाकामी बनी तीर्थयात्रियों की परेशानी, विभागों ने समय पर नहीं की कोई व्यवस्था

कपाट खुलने के साथ ही गंगोत्री और यमुनोत्री धाम की यात्रा के बेपटरी होने का कोई एक नहीं, बल्कि कई कारण हैं। यात्रा की तैयारी के लिए जिम्मेदार विभागों ने न तो समय पर यात्रा मार्गों को दुरुस्त किया और न जन सुविधाओं की पर्याप्त व्यवस्था ही की। हीलाहवाली की हद देखिए कि यात्रा को लेकर कोई व्यवस्थित रूपरेखा तक तैयार नहीं हुई।

होटल संचालकों, वाहन चालकों और जिला पंचायत के साथ यात्रा तैयारी को लेकर पर्याप्त बैठकें भी नहीं हुईं। यातायात प्लान में भी विवेक का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा। साफ शब्दों में कहें तो विभाग अपनी जिम्मेदारी ठीक ढंग से निभाने में नाकाम रहे, जिसका खामियाजा अब तीर्थ यात्रियों को भुगतना पड़ रहा है।

इससे न सिर्फ शासन-प्रशासन की भूमिका और दावों पर सवाल उठ रहे हैं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश की जमकर किरकिरी भी हो रही है। जिम्मेदारों को यात्रा तैयारी का लक्ष्य दिया गया होता तो शायद यात्रा इस तरह नहीं लड़खड़ाती और न तीर्थ यात्रियों को फजीहत ही झेलनी पड़ती।

गंगोत्री और यमुनोत्री धाम में यात्रा को लेकर व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी संबंधित क्षेत्र के उप जिलाधिकारियों की होती है। गंगोत्री की जिम्मेदारी उप जिलाधिकारी भटवाड़ी और यमुनोत्री की जिम्मेदारी उप जिलाधिकारी बड़कोट के पास है। लेकिन, इस बार यात्रा की तैयारी में इन अधिकारियों भी भूमिका सुस्त रही। अधिकारियों ने यात्रा मार्ग, पड़ाव और धामों की धरातलीय स्थिति जांची होती तो यह नौबत नहीं आती। इसके अलावा पिछले पांच दिनों में यात्रा से जुड़े अन्य अधिकारियों और कार्मिकों के बीच संवाद की कमी भी साफ दिखी है।

चारधाम यात्रा तैयारियों को लेकर जिलाधिकारी डा. मेहरबान सिंह बिष्ट ने अधिकारियों के साथ बैठक तो की, परंतु बैठक में दिए गए आदेश धरातल पर नहीं उतरे। इसी का परिणाम है कि समय रहते गंगोत्री और यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग की हालत नहीं सुधरी। सीमा सड़क संगठन शीतकाल में शांत बैठा रहा और जब यात्रा शुरू हुई तो उसे क्षतिग्रस्त गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर पुस्ते लगाने की याद आई।

हालांकि, संगठन अब भी सड़क के उन गड्ढों को दुरुस्त नहीं कर पाया है, जिन्हें मिट्टी भरकर अस्थायी व्यवस्था की जा सकती थी। यही हाल यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग का है। यहां रानाचट्टी से फूलचट्टी तक लगभग 10 किमी लंबी जो सीसी रोड बनाई गई है, वह बेदह संकरी है। यह भी जाम का बड़ा कारण है। इसके अलावा यात्रा पड़ावों पर पार्किंग की भी पर्याप्त सुविधा नहीं है।

कपाटोद्घाटन वाले दिन यमुनोत्री में करीब 12 हजार और गंगोत्री धाम में लगभग ढाई हजार तीर्थयात्री पहुंचे थे। पहले दिन केवल यमुनोत्री धाम के पैदल मार्ग पर जाम की स्थिति दिखी। लेकिन, दूसरे दिन जब लंबे अंतराल तक पालीगाड़ के पास यमुनोत्री की ओर जाने वाले वाहनों को रोके रखा गया तो जाम बढ़ता गया।

तीर्थ यात्रियों के वाहनों को जानकीचट्टी से निकाले जाने का क्रम बरकरार रहता तो इस तरह की स्थिति उत्पन्न नहीं होती। यही नहीं, 12 मई को जब पुलिस-प्रशासन ने यातायात प्लान में बदलाव किया और यमुनोत्री हाईवे पर डामटा, बर्नीगाड़, बड़कोट, पालीगाड़ व जानकी चट्टी और गंगोत्री मार्ग पर नगुण, डुंडा, उत्तरकाशी, नेताला, हीना, गंगनानी, सोनगाड़, झाला व भैरव घाटी में गेट सिस्टम (वन-वे) बनाया तो जाम की समस्या और विकराल हो गई।गत वर्षों में यमुनोत्री राजमार्ग पर पालीगाड़ व जानकीचट्टी के बीच और गंगोत्री राजमार्ग पर गंगनानी, डबराणी, सुक्की टाप व झाला के बीच ही गेट सिस्टम का संचालन होता आया है।

होल्ड यानी वाहनों को रोके रखने का समय भी 15 मिनट से लेकर आधा घंटा तक होता था। जबकि, वर्तमान में इन स्थानों पर वाहनों को चार से पांच घंटे तक रोका जा रहा है। इससे उत्तरकाशी से गंगोत्री धाम तक लगभग 100 किमी दूरी तय करने में 20 से 24 घंटे लग रहे हैं।चारधाम यात्रा उत्तराखंड की आर्थिकी का प्रमुख जरिया है। बावजूद इसके यात्रा की तैयारियों को लेकर अलग से बजट की कोई व्यवस्था नहीं है। सुविधाओं को बढ़ाने में आ रही दिक्कतों का एक कारण यह भी है।

इस बार यात्रा संचालन में सबसे बड़ी खामी योजना को लेकर दिख रही है। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि यात्रा तैयारी को लेकर होटल संचालकों, वाहन चालकों और जिला पंचायत के बीच पर्याप्त बैठकें तक नहीं हुईं। जिन स्थानों पर गेट सिस्टम के तहत तीर्थ यात्रियों के वाहन रोके जा रहे हैं, वहां पानी, शौचालय, होटल, रेस्टोरेंट की सुविधा नहीं है। यमुनोत्री धाम में घोड़ा-खच्चर और डंडी-कंडी के संचालन का जिम्मा जिला पंचायत के पास भी होता है, मगर जानकीचट्टी और यमुनोत्री धाम में डंडी-कंडी व घोड़ा-खच्चर के लिए पार्किंग की व्यवस्था ही नहीं की गई। इससे उनके संचालकों को भी रास्ते पर ही खड़ा होना पड़ रहा है।

गंगोत्री मार्ग पर नगुण से लेकर भैरव घाटी तक श्रद्धालुओं को आठ से अधिक स्थानों पर रोका जा रहा है। जबकि, भैरव घाटी से गंगोत्री के बीच राजमार्ग के किनारे 1500 से अधिक वाहनों की पार्किंग की क्षमता है। गंगोत्री धाम की क्षमता 20 हजार तीर्थ यात्रियों की है। साफ है कि पुलिस-प्रशासन अव्यवहारिक निर्णय के बजाय बुद्धि और विवेक से काम ले तो जाम की समस्या से आसानी से निपटा जा सकता है और तीर्थ यात्रियों को जगह-जगह रुकना भी नहीं पड़ेगा।

पूर्व में गंगोत्री मार्ग पर यात्रा के दौरान सोनगाड़ से हर्षिल तक हर बड़े मोड़ और संकरे स्थान पर पुलिसकर्मी की तैनाती होती थी। झाला से सुक्की तक छह, जबकि सुक्की से शांति मोड़ सोनगाड़ तक सात से आठ पुलिसकर्मी तैनात रहते थे। डबराणी से गंगनानी के बीच भी छह पुलिसकर्मी तैनात रहते थे, लेकिन इस बार ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई है। केवल गेट सिस्टम के पास पुलिस कर्मियों का जमावड़ा है। इस मामले को भाजपा नेता एवं भटवाड़ी ब्लाक की प्रमुख विनीता रावत ने भी उठाया।

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